प्रधानमंत्री की हिंद महासागर यात्रा: भारत की समुद्री रणनीति का नया अध्याय

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प्रस्तावना

मार्च 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए हिंद महासागर के तीन प्रमुख द्वीपीय देशों — सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका — की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य केवल कूटनीतिक मेल-जोल तक सीमित नहीं था, बल्कि भारत की समुद्री नीति, सामरिक दृष्टिकोण और आर्थिक संबंधों को मजबूती देना भी इसका अहम हिस्सा था। यह यात्रा भारतीय विदेश नीति में ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के विस्तार का प्रतीक बनी।

भारत और हिंद महासागर: ऐतिहासिक जुड़ाव

हिंद महासागर न केवल भारत की समुद्री सीमाओं का संरक्षक रहा है, बल्कि यह व्यापार, संस्कृति और आध्यात्मिक संबंधों का सेतु भी रहा है। ‘इंडियन ओशन’ शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1515 में “Oceanus Orientalis Indicus” के रूप में लैटिन भाषा में मिलता है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस समुद्र का नाम भारत से ही जुड़ा है।

भारत की भौगोलिक स्थिति इसे प्राकृतिक समुद्री शक्ति बनाती है। ऐसे में प्रधानमंत्री की यह यात्रा क्षेत्रीय स्थिरता, समुद्री सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए बेहद अहम मानी गई।


सेशेल्स : छोटा देश, बड़ा महत्व

भारत-सेशेल्स संबंध

अफ्रीका के तट से दूर बसा छोटा-सा द्वीपीय देश सेशेल्स, जिसकी आबादी मात्र 90,000 है, भारत के लिए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनमें से लगभग 10% लोग भारतीय मूल के हैं। भारत की टेलीकॉम कंपनी एयरटेल और बैंक ऑफ बड़ौदा पहले से ही सेशेल्स में सफलतापूर्वक कार्यरत हैं।

प्रधानमंत्री की पहल

प्रधानमंत्री मोदी 10 मार्च 2015 को सेशेल्स पहुंचे, और यह 1983 के बाद किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। इस दौरान उन्होंने सेशेल्स को तीन महीने के लिए निःशुल्क वीजा और वीजा ऑन अराइवल सुविधा देने की घोषणा की।

भारत ने एक ‘डोर्नियर एयरक्राफ्ट’ देने और ‘कोस्टल सर्विलांस रडार प्रोजेक्ट’ के शुभारंभ की भी घोषणा की, जो दोनों देशों के बीच सहयोग का प्रतीक बना। इसके साथ ही सेशेल्स ने भारत को अपने असम्प्शन द्वीप को पर्यटन और निगरानी परियोजनाओं के लिए पट्टे पर देने की अनुमति दी।


मॉरीशस : सांस्कृतिक बंधन और आर्थिक साझेदारी

भारतीय मूल की विरासत

मॉरीशस में 70% से अधिक जनसंख्या भारतीय मूल की है, जिससे दोनों देशों के बीच एक गहरा सांस्कृतिक संबंध है। साथ ही, मॉरीशस भारत का एक प्रमुख एफडीआई स्रोत भी रहा है।

द्विपक्षीय समझौते

11 और 12 मार्च 2015 को प्रधानमंत्री ने मॉरीशस की यात्रा की। इस दौरान समुद्री अर्थव्यवस्था, पारंपरिक चिकित्सा, कृषि और द्वीप आधारित परिवहन सुविधाओं के विकास पर समझौते हुए।

मॉरीशस के अगेलेगा द्वीप पर समुद्री और हवाई ढांचे को सुधारने के लिए समझौता हुआ, जिससे वहां की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हो सके। इसके अतिरिक्त, भारतीय वीजा प्रणाली को सरल बनाते हुए वीजा शुल्क समाप्त करने की घोषणा की गई।


श्रीलंका : पड़ोसी से फिर से जुड़ाव

ऐतिहासिक तनाव और नई शुरुआत

भारत और श्रीलंका के बीच तमिल मुद्दा, मछुआरों की समस्याएं, सेतुसमुद्रम परियोजना और चीन की भूमिका जैसे कई कारणों से संबंधों में खटास आई थी। 1987 के बाद यह पहली बार था जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री श्रीलंका की यात्रा पर गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल कोलंबो बल्कि तमिल-बहुल जाफना क्षेत्र का भी दौरा किया, जहां उन्होंने पुनर्वास परियोजनाओं का उद्घाटन किया।

सहयोग के नए आयाम

भारत ने रेलवे क्षेत्र के लिए $318 मिलियन की नई क्रेडिट लाइन की घोषणा की। मछुआरों की समस्याओं पर चर्चा हेतु दोनों देशों के मछुआरा संघों की बैठक कराने का निर्णय लिया गया।

युवा सहयोग पर हस्ताक्षरित समझौता, भविष्य की पीढ़ियों को जोड़ने की दिशा में एक अहम कदम माना गया। इसके अलावा, ‘ओशन इकॉनमी’ पर संयुक्त टास्क फोर्स बनाने की भी घोषणा की गई।


चीन की छाया: क्या यह यात्रा संतुलन साधने की कोशिश थी?

चीन पिछले एक दशक में हिंद महासागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को लगातार बढ़ा रहा है। श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान जैसे देशों में उसकी निवेश योजनाएं और बंदरगाह निर्माण, भारत के लिए चिंता का विषय रही हैं।

हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को सिर्फ चीन के प्रभाव का जवाब मानना सही नहीं होगा। यह भारत की एक स्वतन्त्र और दूरदर्शी समुद्री रणनीति का हिस्सा थी, जो क्षेत्रीय स्थिरता, व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा और सामरिक बढ़त को सुनिश्चित करती है।


निष्कर्ष: समुद्री शक्ति के रूप में भारत का उदय

प्रधानमंत्री की 2015 की हिंद महासागर यात्रा केवल एक राजनयिक मिशन नहीं थी, बल्कि यह एक व्यापक समुद्री दृष्टिकोण की शुरुआत थी। सेशेल्स, मॉरीशस और श्रीलंका के साथ संबंधों को नया आयाम मिला, और भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह इस क्षेत्र में स्थायी शांति, सुरक्षा और समावेशी विकास में एक निर्णायक भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

आज जब वैश्विक शक्ति-संतुलन समुद्रों की ओर झुक रहा है, भारत की यह पहल आने वाले समय में उसे एक समुद्री महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है।

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