खेल

बांग्लादेश में खेलों की दुनिया: एक शानदार सफर

बांग्लादेश केवल अपनी सुंदर नदियों, हरियाली और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि खेलों के प्रति वहां की गहरी भावनाएं और उत्कृष्ट प्रदर्शन भी इसे एक अलग पहचान दिलाते हैं। खेल न केवल लोगों के मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव और आत्मविश्वास का प्रतीक भी बन चुके हैं। पारंपरिक खेलों से लेकर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भागीदारी तक, बांग्लादेश ने खेल जगत में अपनी मजबूत छवि बनाई है।


1. क्रिकेट: बांग्लादेश का खेलों का सम्राट

बांग्लादेश में क्रिकेट एक धर्म की तरह देखा जाता है। यहां का हर बच्चा बल्ला और गेंद से खेलने का सपना देखता है। 1999 में विश्व कप में पहली बार हिस्सा लेने के बाद से बांग्लादेश ने लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार किया।

2015 में बांग्लादेश क्रिकेट के शिखर पर पहुंचा जब उसने पाकिस्तान को 3-0 से, भारत को 2-1 से और दक्षिण अफ्रीका को 2-1 से हराकर क्रिकेट जगत को चौंका दिया। 2020 में बांग्लादेश की अंडर-19 टीम ने भारत को हराकर U-19 वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रच दिया।

प्रमुख खिलाड़ी: शाकिब अल हसन, मेहदी हसन, तमीम इकबाल।


2. हॉकी: संघर्ष के बावजूद चमक

क्रिकेट और फुटबॉल के बाद बांग्लादेश में हॉकी सबसे लोकप्रिय खेल है। हालांकि, सुविधाओं और कुशल प्रशासन की कमी ने इसके विकास में बाधा डाली है, फिर भी खिलाड़ी मेहनत करते रहे हैं। बांग्लादेश ने 1985 एशियन कप की मेजबानी की थी और लगातार एशियाई हॉकी प्रतियोगिताओं में भाग लेता रहा है।

प्रमुख खिलाड़ी: अबु निप्पन, बशीर अहमद।


3. फुटबॉल: दिलों की धड़कन

फुटबॉल कभी बांग्लादेश का सबसे लोकप्रिय खेल हुआ करता था। 1980 और 90 के दशक में इसका क्रेज चरम पर था। आज भले ही इसकी चमक कुछ फीकी पड़ी हो, लेकिन कुछ क्लब्स और खिलाड़ी इसे फिर से जीवन देने में लगे हैं।

प्रमुख खिलाड़ी: जमाल भुइयां, एलेटा किंग्सले।


4. गोल्फ: उभरता हुआ खेल

गोल्फ को बांग्लादेश में एक अभिजात खेल माना जाता है। सिद्धिकुर रहमान ने 2010 में ब्रुनेई ओपन जीतकर एशियाई टूर इवेंट जीतने वाले पहले बांग्लादेशी खिलाड़ी बने। इसके बाद से देश में इस खेल के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है।


5. हैंडबॉल: स्कूलों से स्टेडियम तक

बांग्लादेश हैंडबॉल फेडरेशन 1986 से अंतरराष्ट्रीय संघ से जुड़ी हुई है। स्कूल स्तर पर प्रतियोगिताओं से लेकर साउथ एशियन गेम्स में भागीदारी तक, हैंडबॉल को लेकर जागरूकता बढ़ रही है।


6. रग्बी: ऐतिहासिक पुनरागमन

ब्रिटिश शासन काल में रग्बी खेला जाता था, लेकिन धीरे-धीरे यह गायब हो गया। अब बांग्लादेश रग्बी फेडरेशन यूनियन के तहत इस खेल को फिर से सक्रिय किया गया है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर रग्बी को बढ़ावा दिया जा रहा है।


7. स्क्वैश: नए सितारों की खोज

बांग्लादेश स्क्वैश रैकेट फेडरेशन के प्रयासों से स्क्वैश को नई पहचान मिल रही है। ग्रामीणफोन ओपन स्क्वैश टूर्नामेंट जैसे आयोजन युवाओं को इस खेल से जोड़ रहे हैं।

प्रमुख खिलाड़ी: स्वप्नो परवेज़, राजू राम।


8. टेबल टेनिस: छोटी गेंद, बड़ा जुनून

1950 के दशक से टेबल टेनिस बांग्लादेश में लोकप्रिय रहा है। 1972 में बांग्लादेश टेबल टेनिस फेडरेशन की स्थापना हुई। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी खिलाड़ियों ने सराहनीय प्रदर्शन किया है।

प्रमुख खिलाड़ी: ज़ोबेरा रहमान लीनू, महबूब बिल्लाह, मौमिता आलम रूमी।


9. टेनिस: शहरों तक सीमित खेल

टेनिस अभी भी बांग्लादेश के शहरी क्षेत्रों तक सीमित है। हालांकि, फेडरेशन द्वारा आयोजित टूर्नामेंट और जागरूकता कार्यक्रमों से इस खेल में रुचि बढ़ी है।

प्रमुख खिलाड़ी: अफराना इस्लाम प्रिटी, शिबू लाल।


10. बॉक्सिंग: सीमित लोकप्रियता, सुनहरी यादें

बांग्लादेश में बॉक्सिंग को बहुत अधिक समर्थन नहीं मिला है, लेकिन दक्षिण एशियाई खेलों में यह देश गोल्ड मेडल जीत चुका है। बांग्लादेश एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन इस खेल को सक्रिय रखने के लिए प्रयासरत है।


11. तैराकी: नदियों का देश, तैराकों की जन्मभूमि

250 से अधिक नदियों वाले देश बांग्लादेश में तैराकी एक स्वाभाविक खेल है। ब्रोजन दास ने इंग्लिश चैनल को चार बार पार कर एशिया के पहले ऐसे तैराक बनने का गौरव पाया।

प्रमुख तैराक: मोहम्मद महफिजुर रहमान, मोहम्मद ज्वेल अहमद।


12. कराटे: आत्मरक्षा और मेडल दोनों

11वें और 13वें साउथ एशियन गेम्स में कराटे में बांग्लादेश ने कई गोल्ड मेडल हासिल किए। इस खेल में पुरुषों और महिलाओं दोनों की सक्रिय भागीदारी है।


13. बुथ्थान: आत्मरक्षा की बांग्लादेशी शैली

बुथ्थान केवल एक खेल नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। इसे ग्रैंडमास्टर मक यूरी वज्रमुनी ने विकसित किया, जिन्हें साइंस चैनल ने टॉप 5 सुपरह्यूमन्स में चुना था। इसमें आत्मरक्षा, ध्यान और शारीरिक शक्ति का मेल होता है।


14. तीरंदाजी: निशाने पर देश

2000 में तीरंदाजी की शुरुआत और 2001 में फेडरेशन की स्थापना के बाद यह खेल तेजी से लोकप्रिय हुआ।

प्रमुख खिलाड़ी: रुमान शाना, एमदादुल हक मिलोन।


परंपरागत खेलों की छवि

बांग्लादेश की आत्मा उसके पारंपरिक खेलों में बसती है:

  • हाडु-डु (बांग्लादेश का राष्ट्रीय खेल): ग्रामीण अंचलों में इसकी विशेष लोकप्रियता है।
  • लाठी खेला: पारंपरिक युद्ध कला पर आधारित खेल।
  • बोली खेला: शरीर की ताकत का प्रदर्शन, खासकर चटगांव में प्रसिद्ध।

निष्कर्ष: खेलों में भविष्य की उड़ान

बांग्लादेश ने खेलों के क्षेत्र में एक लंबा सफर तय किया है और आज वह एक ऐसे मुकाम पर है जहां पारंपरिक विरासत और आधुनिक प्रतिस्पर्धा दोनों साथ चलते हैं। चाहे क्रिकेट की ऊंचाइयों की बात हो या तैराकी, कराटे, या बुथ्थान जैसे खेलों की उत्कृष्टता — हर क्षेत्र में बांग्लादेश ने अपनी छाप छोड़ी है।

अगर सरकार, फेडरेशन्स और समाज मिलकर खेलों को प्रोत्साहन दें, तो आने वाले वर्षों में बांग्लादेश एशिया ही नहीं, दुनिया की खेल शक्तियों में गिना जा सकता है।

Twinkle Pandey

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