आज की डिजिटल दुनिया में हर देश तेजी से तकनीक की ओर बढ़ रहा है, और उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है – कैशलेस इकॉनॉमी (नकदरहित अर्थव्यवस्था)। भारत जैसे देश, जिसकी अर्थव्यवस्था वर्षों से नकद पर आधारित रही है, वहाँ एकदम से डिजिटल बदलाव लाना आसान नहीं है। फिर भी, डिजिटल इंडिया के माध्यम से सरकार ने इस दिशा में कई प्रयास किए हैं। पर क्या यह बदलाव एक वरदान है या एक अभिशाप? आइए इस ब्लॉग के माध्यम से इसका विश्लेषण करें।
‘कैशलेस इकॉनॉमी’ का अर्थ है – एक ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ लेन-देन के लिए नकदी का उपयोग न के बराबर हो, और सभी भुगतान डिजिटल माध्यम जैसे कि डेबिट/क्रेडिट कार्ड, UPI, नेट बैंकिंग, मोबाइल वॉलेट आदि से किए जाएं।
👉 हालांकि पूरी तरह से नकदरहित बनना किसी भी देश के लिए फिलहाल संभव नहीं है, लेकिन इसका उद्देश्य नकद उपयोग को कम करके डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना है।
भारत में कैशलेस इकॉनॉमी की ओर पहला बड़ा कदम नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के साथ देखा गया। उस समय सरकार ने 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए और डिजिटल भुगतान को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दिया गया।
नकली नोटों की समस्या भारत में वर्षों से रही है, जिससे आतंकवाद और अवैध व्यापार को बढ़ावा मिलता था। कैशलेस प्रणाली नकली नोटों पर पूरी तरह से रोक लगाने में सहायक होती है क्योंकि डिजिटल मनी में नकली का सवाल ही नहीं उठता।
डिजिटल ट्रांजैक्शन ट्रैक किए जा सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगती है। इससे सरकार को टैक्स कलेक्शन में भी पारदर्शिता मिलती है और काले कारोबार को खत्म किया जा सकता है।
नकदी रखने पर चोरी या डकैती की आशंका हमेशा बनी रहती है। लेकिन डिजिटल भुगतान सिस्टम से यह खतरा बहुत हद तक खत्म हो जाता है क्योंकि पैसे बैंक में रहते हैं और सुरक्षा उपायों से संरक्षित होते हैं।
डिजिटल पेमेंट से समय की बचत होती है। लाइन में लगने या चिल्लर की समस्या से छुटकारा मिलता है। NEFT, RTGS, IMPS, UPI जैसे सिस्टम से पैसे तुरंत एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते हैं।
विदेश यात्रा करने वाले लोगों के लिए कैशलेस सिस्टम बेहद उपयोगी होता है क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा बदलवाने की परेशानी नहीं होती, और भुगतान सीधे डेबिट/क्रेडिट कार्ड या ऐप से हो जाता है।
जहाँ एक ओर इसके कई फायदे हैं, वहीं कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
ग्रामीण भारत या पिछड़े क्षेत्रों में इंटरनेट, स्मार्टफोन और कंप्यूटर की पहुँच कम है। यहाँ तक कि बहुत सारे लोग अभी भी डिजिटल भुगतान करना नहीं जानते, जिससे उन्हें इस प्रणाली से जोड़ना कठिन हो जाता है।
कैशलेस सिस्टम का सबसे बड़ा खतरा साइबर अपराध है। हैकिंग, फ़िशिंग, ऑनलाइन फ्रॉड जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। यदि सुरक्षा पर्याप्त नहीं हो तो लोग अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो सकते हैं।
हर व्यक्ति के पास स्मार्टफोन या इंटरनेट नहीं है, जिससे डिजिटल डिवाइड बढ़ता है। अमीर और गरीब के बीच तकनीकी अंतर और अधिक गहरा हो जाता है।
जहाँ एक ओर पारदर्शिता आती है, वहीं भ्रष्टाचार डिजिटल माध्यमों से भी हो सकता है – जैसे हवाला, फर्जी खाते, बेनामी ट्रांजैक्शन आदि।
यदि हम एक समावेशी कैशलेस समाज की कल्पना कर रहे हैं, तो उसके लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे:
एक कैशलेस इकॉनॉमी अपने आप में आधुनिकता, पारदर्शिता और सुविधा की मिसाल है, लेकिन भारत जैसे विविध और विशाल देश में इसके क्रियान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं।
जहाँ एक ओर यह प्रणाली भ्रष्टाचार, कालाधन और नकली मुद्रा पर रोक लगाती है, वहीं दूसरी ओर साइबर सुरक्षा, डिजिटल असमानता और तकनीकी साक्षरता की कमी जैसी समस्याएं इसकी सफलता में बाधक हैं।
इसलिए, जब तक पूरी आबादी डिजिटल रूप से सक्षम नहीं होती, तब तक यह व्यवस्था एक संतुलित रूप में ही अपनाई जानी चाहिए। कैश और कैशलेस का मिश्रित मॉडल ही फिलहाल भारत के लिए उपयुक्त है।
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