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भारत द्वारा लगाए गए टैरिफ की पूरी जानकारी: एक समग्र विश्लेषण

परिचय

भारत सरकार ने समय-समय पर टैरिफ यानी आयात शुल्क का उपयोग दो प्रमुख उद्देश्यों के लिए किया है—राजस्व एकत्र करना और घरेलू उत्पादकों की सुरक्षा करना। टैरिफ नीतियाँ किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय व्यापार रणनीति का प्रमुख हिस्सा होती हैं और भारत जैसे विकासशील देश में यह नीति आर्थिक विकास का एक शक्तिशाली उपकरण बन चुकी है। इस लेख में हम भारत की टैरिफ नीति, औसत बाउंड टैरिफ, ट्रेंड, व्यापार भारित टैरिफ औसत और उससे जुड़े प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।


टैरिफ क्या होता है?

टैरिफ एक प्रकार का कर (Tax) होता है जिसे किसी देश द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है। जब कोई वस्तु दूसरे देश से भारत में आती है, तो सीमा शुल्क अधिकारी उस पर एक निश्चित कर लगाते हैं, जिसे ही हम टैरिफ कहते हैं। टैरिफ का मुख्य उद्देश्य दो होता है:

  • सरकार के लिए राजस्व एकत्र करना
  • घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा देना

इस नीति से भारत की अर्थव्यवस्था को संतुलन और स्थिरता दोनों मिलते हैं।


भारत की टैरिफ नीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत को स्वतंत्रता के बाद से ही एक क्लोज्ड इकॉनॉमी के रूप में देखा जाता था, यानी ऐसा देश जो बाहरी व्यापार से बहुत कम जुड़ा था। लेकिन 1991 में जब आर्थिक उदारीकरण (Liberalisation) की प्रक्रिया शुरू हुई, तब से भारत की टैरिफ और व्यापार नीति में क्रांतिकारी बदलाव हुए।

1991 के बाद भारत की व्यापार नीति में मुख्य परिवर्तन:

  • टैरिफ बाधाओं में कमी
  • औसत बाउंड टैरिफ में गिरावट
  • नॉन-टैरिफ बाधाओं का हटाना
  • मात्रात्मक प्रतिबंधों का चरणबद्ध उन्मूलन
  • विदेशी निवेश को आकर्षित करने की सरल व्यवस्था

इन सुधारों के बाद भारत ने धीरे-धीरे व्यापारिक उदारीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था की गति पर पड़ा।


बाउंड टैरिफ और एप्लाइड टैरिफ का अंतर

बाउंड टैरिफ (Bound Tariff):

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अंतर्गत हर देश अपनी अधिकतम टैरिफ सीमा तय करता है जिसे Bound Tariff कहा जाता है। यह वह ऊपरी सीमा है जिसके ऊपर कोई देश टैरिफ नहीं बढ़ा सकता।

एप्लाइड टैरिफ (Applied Tariff):

यह वह वास्तविक दर है जिस पर कोई देश आयात शुल्क वसूलता है। कई बार यह दर बाउंड टैरिफ से कम होती है, ताकि व्यापार को बढ़ावा मिल सके।

उदाहरण:
अगर भारत किसी वस्तु पर 50% तक का बाउंड टैरिफ तय करता है, लेकिन असल में केवल 20% टैक्स वसूलता है, तो 20% को एप्लाइड टैरिफ कहा जाएगा।


भारत में औसत बाउंड टैरिफ

WTO के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार:

  • भारत का औसत बाउंड टैरिफ: 48.5%
  • एग्रीकल्चरल उत्पादों पर बाउंड टैरिफ: 113.5%
  • सिंपल MFN एप्लाइड टैरिफ: 13.8%

यह आंकड़े यह दिखाते हैं कि भारत अभी भी कुछ हद तक संरक्षणवादी (Protectionist) दृष्टिकोण अपनाता है, विशेषकर कृषि क्षेत्र में।


ट्रेड-वेटेड टैरिफ क्या होता है?

ट्रेड-वेटेड टैरिफ वह औसत दर होती है जो आयातित वस्तुओं की कुल मात्रा के आधार पर निकाली जाती है। इसे समझने का सरल तरीका है:

ट्रेड-वेटेड औसत टैरिफ = सीमा शुल्क राजस्व / कुल आयात मूल्य

WTO के अनुसार, भारत का ट्रेड-वेटेड औसत 2017 में 7% था, जबकि सिंपल औसत 13.4% था। इसका कारण यह है कि उच्च टैरिफ वाली वस्तुएं आमतौर पर कम मात्रा में आयात होती हैं, जिससे ट्रेड-वेटेड औसत कम आता है।


क्यों ज़रूरी हैं भारत में टैरिफ?

1. घरेलू उद्योगों की सुरक्षा:

विदेश से आने वाली सस्ती वस्तुएं घरेलू बाजार को नुकसान पहुँचा सकती हैं। टैरिफ इन वस्तुओं को महंगा बनाकर घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा से बचाते हैं।

2. राजस्व प्राप्ति का साधन:

सरकार सीमा शुल्क के माध्यम से भारी मात्रा में धन अर्जित करती है, जिससे सार्वजनिक कल्याण के कार्य किए जाते हैं।

3. व्यापार संतुलन बनाए रखना:

भारत जैसे देश, जहां व्यापार घाटा (Trade Deficit) बना रहता है, टैरिफ के ज़रिए आयात पर नियंत्रण रखते हैं ताकि देश का मुद्रा प्रवाह संतुलित रहे।


भारत की टैरिफ नीति पर आलोचना

हालांकि टैरिफ के अपने फायदे हैं, परन्तु अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को कई बार इसकी वजह से आलोचना का सामना करना पड़ा है:

  • विदेशी कंपनियां भारत के उच्च टैरिफ को व्यापार में बाधा मानती हैं।
  • कई गैर-कृषि उत्पादों की टैरिफ लाइनें अब भी WTO में अनबाउंड हैं, यानी भारत उन पर कभी भी शुल्क बढ़ा सकता है।
  • उच्च टैरिफ से कभी-कभी उपभोक्ताओं को महंगी वस्तुएं खरीदनी पड़ती हैं।

भविष्य की राह

भारत को एक संतुलित नीति अपनाने की आवश्यकता है:

  • कृषि क्षेत्र में घरेलू सुरक्षा जरूरी है, परंतु स्मार्ट सब्सिडी और तकनीकी सुधार से यह बिना ऊँचे टैरिफ के भी संभव है।
  • उच्च तकनीक या रणनीतिक वस्तुओं पर लचीले टैरिफ होने चाहिए ताकि भारत तकनीकी दृष्टि से आत्मनिर्भर बन सके।
  • WTO समझौतों के अंतर्गत पारदर्शिता बढ़ाई जानी चाहिए ताकि वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी और सशक्त हो।

निष्कर्ष

भारत की टैरिफ नीति एक जटिल लेकिन रणनीतिक प्रणाली है, जिसे घरेलू हितों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा दोनों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 1991 के बाद से भारत में आर्थिक और व्यापारिक नीति में बड़ा परिवर्तन आया है। औसत बाउंड टैरिफ में गिरावट, टैरिफ बाधाओं का कम होना और ट्रेड वेटेड टैरिफ के उपयोग ने भारत को एक गति प्राप्त करती अर्थव्यवस्था बना दिया है।

आज आवश्यकता है एक ऐसे लचीले टैरिफ ढांचे की, जो न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करे, बल्कि वैश्विक व्यापार में भी भारत को एक सम्मानजनक स्थान दिला सके।

Twinkle Pandey

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