भारत में कोयले की कमी: कारण, प्रभाव और समाधान

1 min read

भूमिका

भारत विश्व में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। इसके बावजूद, देश में कोयले की भारी कमी देखने को मिल रही है, जिससे बिजली उत्पादन और उद्योगों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। इस लेख में हम कोयले की कमी के मुख्य कारणों, इसके प्रभाव और इससे निपटने के संभावित उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।


भारत में कोयले का महत्व

कोयला उत्पादन का इतिहास

भारत में कोयला खनन की शुरुआत 1774 में हुई थी, जब पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र में पहली बार खनन कार्य हुआ। औद्योगिक क्रांति, रेलवे के विस्तार और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कोयले की मांग तेजी से बढ़ी।

आज भारत में कोयला उत्पादन का स्तर करोड़ों टन तक पहुंच चुका है। फरवरी 2022 तक, भारत में कोयले का वार्षिक उत्पादन 79.54 मिलियन टन था। देश में मुख्य रूप से पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में कोयले के विशाल भंडार हैं, जहां झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, और मध्य प्रदेश प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

भारत में कोयले की खपत

भारत में कोयले की खपत विभिन्न उद्योगों द्वारा की जाती है। सबसे अधिक खपत थर्मल पावर प्लांट (तापीय विद्युत संयंत्र) करते हैं। निम्नलिखित आंकड़े भारत में कोयला खपत के प्रमुख क्षेत्रों को दर्शाते हैं:

  • तापीय बिजली उत्पादन – 64.07%
  • इस्पात एवं वॉशरी उद्योग – 6.65%
  • स्पंज आयरन उद्योग – 1.06%
  • सीमेंट उद्योग – 0.75%
  • रसायन और उर्वरक उद्योग – 0.19%

भारत में ऊर्जा की बढ़ती मांग के कारण आने वाले वर्षों में कोयले की खपत और बढ़ने की संभावना है। लेकिन, क्या भारत इस मांग को पूरा करने में सक्षम होगा?


भारत में कोयले की कमी और इसके कारण

कोयले की उपलब्धता में गिरावट

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2021 में भारत के 135 कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों में से 80% के पास केवल 8 दिनों का स्टॉक बचा था, जबकि आधे से अधिक संयंत्रों के पास केवल 2 दिन का कोयला भंडार था। पिछले चार वर्षों में औसतन 18 दिनों का स्टॉक रखा जाता था, लेकिन अब यह तेजी से कम हो गया है।

देश के कई राज्यों, जैसे पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में बिजली कटौती की समस्या देखने को मिली, जिससे उद्योगों और आम जनता को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

कोयले की कमी के प्रमुख कारण

1. बिजली की मांग में तेज़ी से वृद्धि

  • भारत में औद्योगिक विकास, शहरीकरण और डिजिटल क्रांति के चलते बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन के कारण बिजली की खपत में गिरावट आई थी, लेकिन जैसे ही अर्थव्यवस्था फिर से खुली, बिजली की मांग अचानक बढ़ गई।
  • 2021 के पहले 8 महीनों में बिजली की मांग में 13.2% की वृद्धि हुई, जिससे कोयले की मांग भी बढ़ी।
  • जुलाई 2021 में भारत की बिजली मांग 200.57 गीगावॉट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई।

2. अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतों में वृद्धि

  • भारत अपने कुल कोयला उपभोग का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है।
  • भारत इंडोनेशिया (46%), ऑस्ट्रेलिया (23%), दक्षिण अफ्रीका (14%) और अमेरिका (6%) से कोयला आयात करता है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक ऊर्जा संकट के कारण अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतें 400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गईं।
  • इस वजह से भारत ने कोयले का आयात कम कर दिया, जिससे घरेलू उत्पादन पर दबाव बढ़ गया।

3. अत्यधिक वर्षा और स्टॉक प्रबंधन में कमी

  • 2021 में, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे कोयला उत्पादक क्षेत्रों में भारी वर्षा के कारण खनन गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
  • जुलाई-अगस्त 2021 में, भारत का दैनिक कोयला उत्पादन 1.90 लाख टन से गिरकर 90,000 टन रह गया, जो 50% की कमी को दर्शाता है।
  • कोयले की आपूर्ति बाधित होने से बिजली संयंत्रों को पर्याप्त स्टॉक नहीं मिल सका।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार, बिजली संयंत्रों को कम से कम 14 दिनों का स्टॉक रखना चाहिए, लेकिन कई कंपनियां इस गाइडलाइन का पालन नहीं कर पाईं।

कोयले की कमी के प्रभाव

  1. बिजली संकट और लोड शेडिंग – कई राज्यों में घंटों तक बिजली कटौती हुई, जिससे उद्योग और घरेलू उपभोक्ताओं को परेशानी हुई।
  2. उद्योगों पर प्रभाव – इस्पात, सीमेंट, और उर्वरक उद्योगों को कोयले की कमी के कारण उत्पादन में बाधा आई।
  3. महंगाई में वृद्धि – बिजली संकट के कारण उत्पादन लागत बढ़ी, जिससे महंगाई दर पर असर पड़ा।
  4. आर्थिक विकास पर असर – बिजली और ऊर्जा संकट के कारण उद्योगों की विकास दर प्रभावित हुई।

कोयला संकट से निपटने के संभावित समाधान

1. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना

  • कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और जल विद्युत को अधिक बढ़ावा देना चाहिए।
  • सरकार को सौर पैनल और बैटरी भंडारण की लागत कम करने की दिशा में काम करना होगा।

2. कोयला उत्पादन को बढ़ाना और स्टॉक प्रबंधन में सुधार

  • घरेलू खनन को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र को और अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
  • बिजली संयंत्रों को कोयले का स्टॉक बेहतर ढंग से प्रबंधित करना होगा ताकि भविष्य में किसी संकट का सामना न करना पड़े।

3. आयात नीति में सुधार

  • अंतरराष्ट्रीय कोयला बाजार पर निर्भरता को कम करने के लिए घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • आयात नीति को अधिक लचीला बनाकर वैश्विक संकट के समय कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।

4. लॉजिस्टिक्स और परिवहन में सुधार

  • कोयला खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयले की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रेलवे और बंदरगाहों की क्षमता बढ़ानी होगी।

5. ऊर्जा दक्षता में सुधार

  • उद्योगों और बिजली संयंत्रों को अधिक ऊर्जा-कुशल तकनीकों का उपयोग करना चाहिए, जिससे कोयले की खपत कम हो और बिजली उत्पादन अधिक प्रभावी हो सके।

निष्कर्ष

भारत में कोयले की कमी कई कारकों से उत्पन्न हुई, जिनमें बिजली की बढ़ती मांग, अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि, भारी वर्षा और खराब स्टॉक प्रबंधन शामिल हैं। हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर, घरेलू खनन को बढ़ाकर, और लॉजिस्टिक्स को सुधारकर इस संकट से बचा जा सकता है।

कोयले पर अत्यधिक निर्भरता भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है। इसलिए, सरकार और उद्योगों को दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि भारत की ऊर्जा जरूरतों को अधिक स्थिर और टिकाऊ बनाया जा सके।

Loading

You May Also Like

More From Author

30Comments

Add yours
  1. 18
    vorbelutr ioperbir

    I precisely needed to appreciate you once more. I’m not certain the things that I might have made to happen without the actual points discussed by you about such field. It had been a real depressing issue for me, but encountering your well-written form you treated that took me to cry with happiness. I am grateful for this advice and then sincerely hope you comprehend what an amazing job you’re getting into educating others through the use of your web page. I’m certain you have never encountered all of us.

+ Leave a Comment