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राजकोषीय स्थिति पर एक सरल और विस्तृत लेख

परिचय

जब भी देश की अर्थव्यवस्था की बात होती है, तो सरकार की आय और व्यय एक अहम भूमिका निभाते हैं। सरकार के खर्च और कर संग्रहण के माध्यम से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने की प्रक्रिया को ही राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) कहा जाता है। इस नीति के ज़रिए सरकार आर्थिक विकास को गति देती है, महंगाई पर नियंत्रण रखती है, बेरोजगारी घटाती है और समाज में समावेशी विकास को बढ़ावा देती है।


राजकोषीय नीति क्या होती है?

राजकोषीय नीति का तात्पर्य उस रणनीति से है जिसमें सरकार अपने खर्चों और कर संग्रह के ज़रिए आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है। यह नीति विशेष रूप से मंदी (Recession) या मुद्रास्फीति (Inflation) जैसी परिस्थितियों में उपयोगी साबित होती है।

जॉन मेनार्ड कीन्स नामक प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री ने यह सिद्धांत दिया था कि सरकार द्वारा खर्च और टैक्स में परिवर्तन से कुल मांग (Aggregate Demand) और आर्थिक गतिविधियों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इस सिद्धांत को ही राजकोषीय नीति की नींव माना जाता है।


राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) क्या है?

जब सरकार की कुल आय, उसके कुल खर्च से कम होती है, तो इस स्थिति को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।

🔴 राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (कर और गैर-कर राजस्व)

राजकोषीय घाटा यह दर्शाता है कि सरकार को कितने धन की कमी है, जिसे वह उधारी या अन्य माध्यमों से पूरा करती है।


भारत की राजकोषीय स्थिति: एक विश्लेषण

भारत की वर्तमान राजकोषीय स्थिति को लेकर विशेषज्ञों में चिंता है। यह चिंता केवल एक अस्थायी चक्र नहीं बल्कि एक संरचनात्मक समस्या है।

📊 कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े:

  • जनवरी 2022 के अंत तक भारत का बजटीय घाटा 58.9% था, जो पूरे वर्ष के लिए निर्धारित लक्ष्य का एक बड़ा हिस्सा था।
  • भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के अनुसार, वर्ष 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान (RE) के मुकाबले राजकोषीय घाटा 66.8% तक पहुँच गया था।
  • वर्ष 2021-22 में अनुमानित घाटा 6.8% GDP का था।
  • कोविड-19 के कारण भारत ने अपने राजकोषीय घाटे को 6.3% – 6.5% GDP तक सीमित करने का लक्ष्य रखा, जिससे आर्थिक पुनरुद्धार में मदद मिल सके।

📌 इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि भारत को अपने राजस्व और व्यय के संतुलन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।


राजकोषीय नीति के प्रमुख घटक (Components of Fiscal Policy)

राजकोषीय नीति को तीन मुख्य भागों में बांटा जा सकता है:

1. सरकारी प्राप्तियाँ (Government Receipts)

सरकार की आय दो भागों में होती है:

(क) राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts)

  • प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes): जैसे आयकर, कॉर्पोरेट टैक्स
  • अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes): जैसे GST, सीमा शुल्क
  • गैर-कर राजस्व (Non-tax Revenue): जैसे शुल्क, लाइसेंस, जुर्माने आदि

(ख) पूंजीगत प्राप्तियाँ (Capital Receipts)

  • ऋण की वसूली
  • विनिवेश (Disinvestment)
  • उधारी और देनदारियाँ

2. सरकारी व्यय (Government Expenditure)

सरकार दो प्रकार के व्यय करती है:

(क) पूंजीगत व्यय (Capital Expenditure)

  • सार्वजनिक उपक्रमों को ऋण
  • अधोसंरचना परियोजनाएँ
  • ऋण की अदायगी

(ख) राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)

  • वेतन, पेंशन
  • ब्याज भुगतान
  • रक्षा खर्च
  • कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च

3. सार्वजनिक ऋण (Public Debt)

जब सरकार को घाटा होता है तो वह धन उधार लेती है। यह सार्वजनिक ऋण कहलाता है। यह आंतरिक और बाहरी दोनों हो सकता है।


राजकोषीय नीति कैसे काम करती है?

राजकोषीय नीति के माध्यम से सरकार कुल मांग (Aggregate Demand) और कुल आपूर्ति (Aggregate Supply) को नियंत्रित करती है।

जब सरकार खर्च बढ़ाती है – बाजार में नकदी बढ़ती है, मांग बढ़ती है, रोजगार उत्पन्न होते हैं।
जब सरकार कर बढ़ाती है – लोगों की खर्च करने की शक्ति घटती है, मांग कम होती है, जिससे महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है।


राजकोषीय नीति के लाभ

  • आर्थिक विकास को गति देना
  • बेरोजगारी में कमी
  • आय असमानता में सुधार
  • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण
  • सार्वजनिक सेवाओं में सुधार
  • संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को सहारा देना

भारत में राजकोषीय नीति की चुनौतियाँ

  • लगातार बढ़ता राजकोषीय घाटा
  • कम कर संग्रह क्षमता
  • योजनाओं में भ्रष्टाचार और अपव्यय
  • जनसंख्या वृद्धि
  • सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता

सरकार के हालिया कदम

  • विनिवेश कार्यक्रम: सरकारी उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचकर आय जुटाई जा रही है।
  • बजट सुधार: बजट को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने का प्रयास
  • GST सुधार: कर प्रणाली को सरल और व्यापक बनाने के प्रयास
  • उपभोग आधारित योजनाएं: जैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना

निष्कर्ष

राजकोषीय नीति किसी भी देश की आर्थिक स्थिरता और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह नीति सामाजिक न्याय और आर्थिक प्रगति का सेतु है।

✅ यदि सरकार राजस्व संग्रहण, बजट प्रबंधन और जनहित योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करे, तो भारत अपने राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करते हुए समावेशी विकास की दिशा में आगे बढ़ सकता है।

Twinkle Pandey

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