गणितपाद (Ganitapada) आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ ग्रंथ का दूसरा अध्याय है, जिसमें 33 श्लोकों के माध्यम से गणित के विविध विषयों को प्रस्तुत किया गया है। ये श्लोक संस्कृत के आर्या छंद में रचित हैं और इनमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, क्षेत्रमिति, प्रगति, रेखीय समीकरण, घातांक, कुट्टक विधि, छाया गणना (शंकु छाया), और दशमलव स्थान मान प्रणाली जैसे विषयों को समाहित किया गया है।
आर्यभट ने दशमलव स्थान मान प्रणाली का वर्णन किया, जिसमें संख्याओं को 1, 10, 100, 1000 आदि के रूप में स्थान के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। उन्होंने वर्णमाला के अक्षरों के माध्यम से संख्याओं को निरूपित करने की प्रणाली भी विकसित की, जिससे बड़ी संख्याओं को सरलता से व्यक्त किया जा सकता था। Wikipedia
गणितपाद में वर्ग (square) और घन (cube) की परिभाषा और उनकी गणना के सूत्र दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, किसी संख्या का वर्ग उस संख्या को स्वयं से गुणा करने पर प्राप्त होता है, और घन उस संख्या को तीन बार स्वयं से गुणा करने पर।
श्लोकों में वर्गमूल (square root) और घनमूल (cube root) निकालने की विधियाँ वर्णित हैं। उदाहरण के लिए, 529 का वर्गमूल 23 है, और 12167 का घनमूल भी 23 है।
(x + y)² और (x + y)³ जैसे बहुपदों के विस्तार के सूत्र दिए गए हैं, जो आधुनिक बीजगणित में भी उपयोगी हैं।
गणितपाद में विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों के क्षेत्रफल और आयतन की गणना के सूत्र प्रस्तुत किए गए हैं:
आर्यभट ने π का मान 3.1416 के रूप में निकटतम मान दिया, जो उस समय के लिए अत्यंत सटीक था। StudiousGuy
गणितपाद में त्रिकोणमिति के सिद्धांतों को भी शामिल किया गया है, जिसमें अर्धज्या (sine) और ज्या (cosine) की अवधारणाएँ प्रस्तुत की गई हैं। उन्होंने त्रिकोण के क्षेत्रफल की गणना के लिए सूत्र भी दिए हैं।
श्लोकों में अंकगणितीय (arithmetic) और ज्यामितीय (geometric) प्रगति की अवधारणाएँ और उनके n पदों के योग की गणना के सूत्र दिए गए हैं।
आर्यभट ने कुट्टक विधि के माध्यम से रेखीय और अनिर्धारित समीकरणों को हल करने की तकनीक विकसित की, जो आधुनिक बीजगणित में महत्वपूर्ण है।
गणितपाद में ax + b = cx + d जैसे रेखीय समीकरणों को हल करने की विधियाँ भी प्रस्तुत की गई हैं।
गणितपाद के 33 श्लोकों को विभिन्न विषयों में विभाजित किया जा सकता है:
🧠 आर्यभट की अन्य गणितीय उपलब्धियाँ
आर्यभट ने शून्य की अवधारणा और स्थान मान प्रणाली को विकसित किया, जो आधुनिक गणित की नींव है। इस प्रणाली में प्रत्येक अंक का स्थान, जैसे इकाइयाँ, दस, सैकड़ों, आदि, उसकी मान्यता को निर्धारित करता है। शून्य का उपयोग केवल अंक के रूप में नहीं, बल्कि गणना और रचनात्मक रूप से भी किया गया, जिससे गणित के विकास में एक बड़ी क्रांति आई। इस विचार ने आगे चलकर दशमलव प्रणाली और अंकों के महत्व को स्पष्ट किया। यह प्रणाली आज के गणित में उपयोगी साबित हुई है, खासकर अंकगणित और खगोलशास्त्र में।
आर्यभट ने π का मान 3.1416 के रूप में निकाला, जो उस समय के लिए अत्यंत सटीक था। इस मान की गणना उन्होंने अपने कार्यों में की और इसे गणितपाद में स्थान दिया। π के मान की सटीकता उस समय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, क्योंकि यह खगोलशास्त्र और ज्यामिति में गणनाओं के लिए अत्यंत आवश्यक था। उनके द्वारा निकाला गया π का मान आज भी सटीकता के मामले में प्रासंगिक है और यह अन्य गणितज्ञों द्वारा किए गए शोधों की नींव के रूप में कार्य करता है।
आर्यभट को त्रिकोणमिति के संस्थापक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने साइन (अर्धज्या) और कोसाइन (ज्या) जैसी अवधारणाओं का उपयोग किया और इनकी गणना के लिए विधियाँ दीं। त्रिकोणमिति के उनके सिद्धांतों का प्रभाव न केवल गणित बल्कि खगोलशास्त्र में भी देखा जाता है, क्योंकि वह पृथ्वी के घूर्णन और ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर रहे थे। इसने भविष्य में खगोलशास्त्रियों को ग्रहों के मार्ग और सौरमंडल के अन्य गुणों को बेहतर तरीके से समझने में मदद की।
आर्यभट ने पृथ्वी के घूर्णन को समझते हुए इसकी गणना की। उन्होंने पृथ्वी के घूर्णन के समय का अनुमान भी लगाया, जो आधुनिक खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण था। उनके अनुसार पृथ्वी 24 घंटे में अपनी धूरी पर घुमती है, जो आज के समय में सही मानी जाती है। उनके द्वारा गणना किए गए ग्रहों और उनके उपग्रहों के गति के सिद्धांत भी अत्यंत महत्वपूर्ण थे।
आर्यभट ने कालगणना के लिए एक नया तरीका प्रस्तुत किया। उन्होंने 360 दिन के वर्ष को 365.358 दिन के वास्तविक वर्ष के निकट बताया। साथ ही, उन्होंने खगोलीय घटनाओं, जैसे ग्रहणों और नक्षत्रों की गणना की, जो आज भी उपयोगी मानी जाती है। उनके द्वारा प्रस्तुत यह कालगणना प्रणाली कई खगोलशास्त्रियों के लिए मार्गदर्शक साबित हुई।
आर्यभट ने समीकरणों के हल के लिए कुट्टक विधि का विकास किया। यह एक प्रकार की गणितीय प्रक्रिया है, जिसका उपयोग बीजगणितीय समीकरणों को हल करने के लिए किया जाता था। यह विधि बाद में भारतीय गणितज्ञों द्वारा विकसित किए गए अन्य तकनीकों के लिए एक मजबूत आधार बनी। इस विधि के द्वारा जटिल समीकरणों को सरल रूप में हल किया जा सकता था।
आर्यभट ने शेषफल और विभाजन (division) की अवधारणाओं पर कार्य किया। उनका उद्देश्य था कि विभाजन की समस्याओं को सरल और प्रभावी तरीके से हल किया जाए। इस कार्य में उन्होंने विशेष ध्यान दिया कि कैसे शेषफल को आसानी से समझा और इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे बाद में भारतीय गणितज्ञों ने इसे विस्तार से प्रयोग किया।
आर्यभट का गणितीय योगदान न केवल भारतीय गणित के इतिहास में महत्वपूर्ण था, बल्कि पूरे विश्व में गणित और खगोलशास्त्र के विकास में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके कार्यों का असर आज भी विभिन्न गणितीय और खगोलशास्त्रीय समस्याओं के हल में देखा जाता है। उनके योगदान ने पूरी दुनिया में गणित के अध्ययन और विकास की दिशा को बदल दिया।
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