मैकमोहन रेखा : भारत-चीन सीमा विवाद की जड़ें और वर्तमान परिप्रेक्ष्य

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भारत और चीन, एशिया के दो प्रमुख शक्तिशाली देश, एक लंबी साझा सीमा के कारण वर्षों से कई बार आमने-सामने आए हैं। इस सीमा विवाद की जड़ में जो रेखा सबसे अधिक चर्चा में रही है, वह है — मैकमोहन रेखा (McMahon Line)। यह रेखा केवल एक भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि राजनीतिक, ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि मैकमोहन रेखा क्या है, इसका ऐतिहासिक संदर्भ, भारत और चीन के बीच इससे जुड़े विवाद, और वर्तमान स्थिति क्या है।


1. मैकमोहन रेखा क्या है?

मैकमोहन रेखा वह काल्पनिक सीमा रेखा है जो भारत के अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत से अलग करती है। इसे 1914 में शिमला समझौते (Shimla Convention) के दौरान खींचा गया था। इस रेखा की लंबाई लगभग 890 किलोमीटर है और यह भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में फैली हुई है। इसका नाम ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी मैकमोहन (Sir Henry McMahon) के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने इस सीमा रेखा को प्रस्तावित किया था।


2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : शिमला समझौता (1914)

ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन का त्रिकोण

1913-14 के बीच ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के प्रतिनिधियों के बीच शिमला में एक त्रिपक्षीय सम्मेलन हुआ था। इसका उद्देश्य था — तिब्बत के साथ सीमा तय करना ताकि ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच क्षेत्रीय विवाद न हों। हालांकि, चीन ने इस समझौते को कभी मान्यता नहीं दी और अंततः उसने इसे अस्वीकार कर दिया।

ब्रिटिश और तिब्बती प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त नक्शे पर हस्ताक्षर किए, जिसमें मैकमोहन रेखा दर्शाई गई थी। यह रेखा अरुणाचल प्रदेश (तब का नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर) को तिब्बत से अलग करती है। चीन उस समय तिब्बत पर संप्रभु नियंत्रण नहीं रखता था, इसलिए ब्रिटिश इसे वैध मानते थे।


3. तिब्बत का अधिग्रहण और विवाद की शुरुआत

1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और उसे अपने क्षेत्र का हिस्सा घोषित कर दिया। इसके बाद से चीन ने मैकमोहन रेखा को अवैध और अवैध रूप से थोपी गई रेखा करार दिया। वहीं भारत, शिमला समझौते को वैध मानता है और मैकमोहन रेखा को अपनी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के रूप में मान्यता देता है।


4. भारत-चीन युद्ध 1962 और मैकमोहन रेखा

नेहरू की फॉरवर्ड पॉलिसी

1959 में जब दलाई लामा भारत आए, तो चीन के साथ संबंध और बिगड़ गए। इसके बाद भारत ने सीमा पर अपने “फॉरवर्ड पॉलिसी” के तहत कई चौकियाँ स्थापित करनी शुरू कीं।

अक्टूबर 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया और अरुणाचल प्रदेश के तवांग, वॉलोंग और नामका चू जैसे क्षेत्रों में कब्जा कर लिया। हालांकि युद्ध के बाद चीन पीछे हट गया, लेकिन सीमा विवाद समाप्त नहीं हुआ।


5. रणनीतिक महत्व और भौगोलिक स्थिति

मैकमोहन रेखा भारत की पूर्वी सीमाओं की रक्षा के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह रेखा हिमालय की ऊँचाई पर स्थित है, जो इसे सामरिक दृष्टि से विशेष बनाती है। इसके आसपास के क्षेत्रों में सेना की चौकियाँ, हवाई पट्टियाँ, और सड़कें भारत सरकार द्वारा तैयार की गई हैं ताकि किसी भी आपात स्थिति में जवाब दिया जा सके।


6. वर्तमान स्थिति और संघर्ष की झलकियाँ

1986-87: सुमदोरोंग चू घाटी में तनाव

सुमदोरोंग चू घाटी, जो अरुणाचल प्रदेश में स्थित है, वह क्षेत्र भी विवाद का कारण बन चुका है। 1986 में भारत ने यहां चौकी स्थापित की, जिसके बाद चीन ने सैनिक भेजकर विरोध जताया। यह झड़प युद्ध में नहीं बदली लेकिन दोनों देशों के संबंधों में तनाव जरूर आया।

1996 का समझौता

राजीव गांधी की चीन यात्रा (1988) के बाद, 1993 और 1996 में दोनों देशों ने “बॉर्डर मैनेजमेंट एग्रीमेंट्स” पर हस्ताक्षर किए। इसमें कहा गया कि कोई भी पक्ष हथियारों के साथ सीमा पार नहीं करेगा, और शांति बनाए रखेगा। इसके बावजूद, समय-समय पर LAC पर तनाव की घटनाएं होती रही हैं।


7. चीन की दलीलें और भारत का जवाब

चीन का कहना है कि मैकमोहन रेखा एक औपनिवेशिक विरासत है, जिसे उस समय थोपा गया जब तिब्बत स्वतंत्र था और चीन कमज़ोर। लेकिन भारत का मानना है कि तिब्बत ने स्वतन्त्र रूप से इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे और चीन उस समय संप्रभु शक्ति नहीं था।

क्या यह कानूनी है?

अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत कोई भी संधि तब वैध मानी जाती है जब वह संप्रभु संस्थाओं के बीच हुई हो। चूंकि तिब्बत उस समय एक स्वतंत्र और स्वशासी क्षेत्र था, इसलिए मैकमोहन रेखा को भारत एक वैध और अंतरराष्ट्रीय मान्य सीमा मानता है।


8. भूत, वर्तमान और भविष्य

आज की स्थिति

भारत ने अरुणाचल प्रदेश में सड़कों, पुलों और एयरबेस की बुनियादी संरचना में भारी निवेश किया है। वहीं चीन भी अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मज़बूत कर रहा है। तवांग, जो एक धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है (बौद्ध मठ), चीन के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना हुआ है।

भविष्य की राह

सीमा विवाद तब तक नहीं सुलझ सकता जब तक दोनों देश आपसी समझ और भरोसे के साथ बैठकर समाधान न खोजें। जहां एक ओर भारत अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं कर सकता, वहीं चीन अपनी विस्तारवादी नीति से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता।


निष्कर्ष : मैकमोहन रेखा का महत्व

मैकमोहन रेखा सिर्फ एक नक्शे की रेखा नहीं है, बल्कि यह भारत की सीमाओं की सुरक्षा, संप्रभुता की पहचान और राजनीतिक परिपक्वता का प्रतीक है। यह भारत की राजनयिक दृढ़ता को भी दर्शाती है कि वह अंतरराष्ट्रीय संधियों को सम्मान देता है और अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए तत्पर है।

जहां एक ओर भारत ने लोकतंत्र और विकास का रास्ता अपनाया है, वहीं दूसरी ओर चीन अपने पुराने नक्शों के आधार पर भूमि दावा करता है। इसलिए, मैकमोहन रेखा की वैधता और उसकी आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक है।

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