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योजना युग और राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण (NSS): भविष्य की नींव आज की गणनाओं से

“अगर सही समय पर सही आंकड़े उपलब्ध हों, तो देश की दिशा भी सही तय होती है।”

आज हम उस दौर में हैं जहां आंकड़े, योजनाएं और रणनीतियाँ देश की प्रगति की बुनियाद बन चुकी हैं। भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में योजनाओं का निर्माण तब तक संभव नहीं जब तक हमारे पास ठोस आँकड़े न हों। ऐसे में राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण (NSS) न केवल एक सांख्यिकीय संस्था है, बल्कि यह भारत की आर्थिक योजना प्रणाली का हृदय है।

योजना युग की शुरुआत: भविष्य की राह की पहली ईंट

भारत की आज़ादी के बाद सबसे बड़ी आवश्यकता थी — पुनर्निर्माण। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को खत्म करना, गरीबी दूर करना और देश को आत्मनिर्भर बनाना मुख्य उद्देश्य था। यही वह समय था जब ‘योजना युग’ (Age of Planning) की नींव पड़ी।

1950 में भारत ने अपनी पहली पंचवर्षीय योजना शुरू की। योजना आयोग (अब नीति आयोग) की स्थापना की गई और देश के विकास के लिए योजनाओं को लागू करने हेतु आंकड़ों की आवश्यकता महसूस की गई। यह वह समय था जब किसी ठोस और व्यापक डाटा स्रोत की दरकार थी — और तब सामने आया राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण (NSS)।


राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण: आंकड़ों की कहानी

स्थापना और उद्देश्य
1950 में भारत सरकार ने प्रो. पी. सी. महालनोबिस की सिफारिश पर राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण की शुरुआत की। NSS का उद्देश्य था ग्रामीण और शहरी भारत की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति पर सटीक और व्यवस्थित आंकड़े इकट्ठा करना।

प्रारंभिक चरण
पहली सर्वेक्षण श्रृंखला 1950-51 में शुरू हुई, जिसमें केवल 1,833 गांवों को शामिल किया गया। इस सर्वे में ज़मीन के उपयोग, मजदूरी दर, कीमतें आदि पर जानकारी एकत्रित की गई।

चार प्रमुख प्रभाग
NSS चार मुख्य विभागों में विभाजित है:

  1. सर्वे डिजाइन और अनुसंधान प्रभाग
  2. फील्ड ऑपरेशन प्रभाग
  3. डेटा प्रोसेसिंग प्रभाग
  4. सर्वे समन्वय प्रभाग

NSS के द्वारा संचालित प्रमुख सर्वे

1. कृषि और भूमि संबंधी सर्वेक्षण
भूमि स्वामित्व, फसल उत्पादन, पशुपालन आदि पर आधारित डाटा संग्रह।

2. ग्रामीण और शहरी क्षेत्र सर्वेक्षण
गांवों और शहरी क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर गहराई से अध्ययन।

3. उपभोग और व्यय पैटर्न
किसी परिवार का औसत मासिक उपभोग और खर्च कितना है, इससे निर्धनता रेखा की सीमा तय की जाती है।

4. रोजगार और बेरोजगारी
देश में कितने लोग कार्यरत हैं, कितने बेरोज़गार हैं, और क्या स्वरोजगार को बढ़ावा मिल रहा है — इन सभी पहलुओं की जानकारी।

5. असंगठित क्षेत्र का अध्ययन
मजदूरी, सुरक्षा, काम की प्रकृति आदि पर आधारित सर्वेक्षण।

6. स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर
लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच, शिक्षा स्तर और जीवन की गुणवत्ता से जुड़े आंकड़े।


NSS के आंकड़ों से कैसे बनती हैं नीतियां?

NSS द्वारा एकत्रित आंकड़े सरकार की सभी योजनाओं की नींव होते हैं। जैसे:

  • गरीबी उन्मूलन योजनाएं: NSS के उपभोग सर्वे से पता चलता है कि कौन से वर्ग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं। उसी के अनुसार योजनाएं बनाई जाती हैं।
  • मनरेगा (MGNREGA): NSS के रोजगार आंकड़ों के आधार पर योजना की आवश्यकता और दायरा तय होता है।
  • स्वास्थ्य बीमा योजनाएं: NSS के स्वास्थ्य सर्वे से यह समझा जाता है कि किन क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं कमज़ोर हैं।
  • शिक्षा योजनाएं: NSS के डेटा से साक्षरता दर और स्कूल ड्रॉप-आउट दर की जानकारी मिलती है, जिससे शिक्षा नीतियां तय होती हैं।

योजना युग में डेटा की भूमिका क्यों अहम है?

✅ समस्याओं की पहचान

अगर हम किसी समस्या को आंकड़ों से नहीं समझते, तो उस पर काम करना अंधेरे में तीर चलाने जैसा होता है।

✅ लक्ष्य निर्धारण

NSS के आंकड़ों के ज़रिए सरकार यह तय कर सकती है कि किस योजना का कितना बजट होना चाहिए, और किन क्षेत्रों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

✅ प्रभाव मूल्यांकन

किसी योजना का कितना असर पड़ा, यह समझने में NSS की आवधिक रिपोर्टें मदद करती हैं।


NSS के विकास की यात्रा

1950 में शुरू हुआ NSS आज 14,000 से अधिक गांवों और शहरों में सर्वे करता है। इसकी रिपोर्टें अब डिजिटल रूप से उपलब्ध हैं और सरकार से लेकर विश्वविद्यालयों तक इसका उपयोग होता है।

NSS दो प्रकार की रिपोर्टें बनाता है:

1. थिक राउंड (Thick Round)

हर 5 साल में एक बार व्यापक सर्वेक्षण। इसमें लगभग 1,20,000 परिवारों को शामिल किया जाता है।

2. थिन राउंड (Thin Round)

छोटे सैंपल पर आधारित वार्षिक सर्वे, जिससे तेजी से नीति-निर्धारण हो सके।


आंकड़ों से तय होती है विकास की दिशा

मान लीजिए सरकार को यह जानना है कि किस राज्य में शिक्षा की स्थिति सबसे खराब है। NSS की रिपोर्ट बता सकती है कि किस राज्य में स्कूल ड्रॉप-आउट दर सबसे अधिक है, और फिर उसी के आधार पर नई योजना लाई जा सकती है।

इसी तरह अगर किसी योजना से ग्रामीण आजीविका पर असर नहीं पड़ रहा है, तो NSS की रिपोर्ट ही संकेत देती है कि योजना में बदलाव की आवश्यकता है।


क्या NSS के बिना योजनाएं संभव हैं?

बिलकुल नहीं। NSS एक आईना है, जो हमें देश की सच्चाई दिखाता है — बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी पूर्वाग्रह के। यह आंकड़ों की ताकत है जो नीतियों को सटीक और प्रभावशाली बनाती है।


21वीं सदी और डेटा क्रांति

आज के डिजिटल युग में NSS ने भी खुद को अपडेट किया है। मोबाइल ऐप्स, डिजिटल फॉर्म और ऑनलाइन डेटा प्रोसेसिंग के ज़रिए NSS का कार्य और अधिक पारदर्शी व सुलभ हो गया है।

भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) जैसे तकनीकों के ज़रिए NSS के आंकड़ों का विश्लेषण और भी तेज़ और सटीक होगा।


निष्कर्ष: NSS — भारत के विकास की मूक रीढ़

राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण केवल आंकड़े नहीं देता, बल्कि यह देश की आत्मा की नब्ज़ पकड़ता है। यह योजना युग की धड़कन है। अगर NSS नहीं होता, तो हम योजनाएं बनाते भी, तो वह केवल कागजों तक सीमित रहतीं।

योजना वही सफल होती है, जो ज़मीन की सच्चाई पर आधारित हो — और वह सच्चाई NSS हमें दिखाता है।

Twinkle Pandey

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