पैसा

🌐 MAT और FIIs: भारत की आर्थिक दिशा के दो स्तंभ

भारत की आर्थिक प्रणाली कई जटिल लेकिन आवश्यक पहलुओं पर आधारित है, जिनमें कर नीति और विदेशी निवेश सबसे महत्वपूर्ण हैं। यदि भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है, तो इन दोनों क्षेत्रों में संतुलन और पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है। आज हम इसी सन्दर्भ में दो अहम विषयों पर चर्चा करेंगे — MAT (Minimum Alternate Tax) और FIIs (Foreign Institutional Investors)


🔍 MAT क्या है? – टैक्स की वैकल्पिक प्रणाली

MAT (न्यूनतम वैकल्पिक कर), भारत सरकार द्वारा उन कंपनियों पर लगाया जाने वाला एक विशेष कर है, जो कानूनी छूटों, कटौतियों और रियायतों का लाभ उठाकर “ज़ीरो टैक्स” दे रही थीं। इन कंपनियों के पास आय और मुनाफ़ा तो था, लेकिन कर नहीं देना पड़ रहा था। MAT यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी कंपनियाँ भी कुछ न कुछ टैक्स अवश्य दें।

🧾 MAT की मूल परिभाषा:

“जब कोई कंपनी आयकर अधिनियम के अंतर्गत कर योग्य नहीं बनती लेकिन कंपनी अधिनियम के अंतर्गत मुनाफा दिखाती है, तो उसे एक न्यूनतम प्रतिशत पर कर देना होता है, जिसे MAT कहा जाता है।”


📜 MAT का ऐतिहासिक सफर

  • 1983: MAT की शुरुआत हुई थी सेक्शन 80VVA के तहत।
  • 1988: इसे सेक्शन 115J द्वारा पुनः लागू किया गया।
  • 1990: इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया।
  • 1996-97: वित्त अधिनियम 1996 के ज़रिए इसे फिर से लागू किया गया।

📌 वर्तमान MAT दरें:

  • 2015 तक – 18.5%
  • 2019 में – 15% कर दिया गया, जिससे कॉर्पोरेट टैक्स में राहत मिले

🎯 MAT लागू करने का उद्देश्य

  1. कर चोर कंपनियों को टैक्स नेट में लाना
  2. सरकार के राजस्व को बढ़ाना
  3. आयकर व्यवस्था में समानता लाना
  4. ज़ीरो टैक्स कंपनियों को जवाबदेह बनाना
  5. लाभ कमाने वाली कंपनियों से उचित टैक्स वसूली करना

सरल भाषा में: जो कंपनियाँ मुनाफा कमा रही हैं, उन्हें कुछ न कुछ कर देना ही होगा – यही है MAT का मूलमंत्र।


🧮 MAT की गणना कैसे होती है?

मान लीजिए कि किसी कंपनी का बुक प्रॉफिट ₹10 करोड़ है। अब MAT दर 15% है, तो उस कंपनी को न्यूनतम ₹1.5 करोड़ (प्लस सेस और सरचार्ज) टैक्स देना अनिवार्य है, चाहे वह आयकर अधिनियम के तहत कर मुक्त क्यों न हो।

📘 बुक प्रॉफिट: यह वह लाभ है जो कंपनी अपने खातों में दर्शाती है, न कि टैक्स गणना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लाभ।


🌎 FIIs क्या हैं? – विदेशी निवेश का पहिया

FIIs (Foreign Institutional Investors) वे संस्थाएं होती हैं जो किसी देश के बाहर की होती हैं लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में निवेश करती हैं। ये निवेशक भारत के शेयर बाजार में निवेश करते हैं और पूंजी प्रवाह को तेज़ करते हैं।

🏦 FIIs में कौन-कौन शामिल होते हैं?

  • हेज फंड्स
  • म्युचुअल फंड्स
  • बीमा कंपनियां
  • पेंशन फंड्स
  • सरकारी संपत्ति निधियां (Sovereign Wealth Funds)
  • ट्रस्ट और पोर्टफोलियो प्रबंधक

📈 भारत में FIIs की भूमिका

  1. शेयर बाजार में तरलता लाना – जब FII निवेश करते हैं तो बाजार में पैसे का प्रवाह बढ़ता है।
  2. विदेशी मुद्रा भंडार को मज़बूती देना – डॉलर में निवेश से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है।
  3. बाजार में विश्वास जगाना – विदेशी निवेशकों का भरोसा आर्थिक स्थिरता का संकेत है।
  4. संस्थागत सुधारों को प्रोत्साहन – FIIs पारदर्शी नियमों और स्थायित्व की माँग करते हैं, जिससे नीति में सुधार आता है।

🚫 FIIs से जुड़ी चुनौतियां

  1. तेज़ी से निकासी – यदि विदेशी निवेशक एक साथ बाजार से बाहर निकलते हैं, तो भारी गिरावट संभव है।
  2. बाजार में अस्थिरता – अचानक निवेश और निकासी से शेयर मार्केट में अस्थिरता आती है।
  3. घरेलू निवेशकों पर दबाव – बड़े निवेशकों के फैसले छोटे निवेशकों को प्रभावित करते हैं।

📏 FIIs के लिए सरकार की नीतियाँ

भारत सरकार ने FIIs के लिए कुछ निवेश सीमाएं तय की हैं:

  • कुल चुकता पूंजी का अधिकतम 24% तक निवेश की अनुमति
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए सीमा – 20%
  • यदि किसी कंपनी में FII निवेश 22% तक पहुँच जाए तो RBI चेतावनी जारी करता है
  • निवेश की सीमा पार करने के लिए RBI की अनुमति अनिवार्य

🔁 FDI और FII में प्रमुख अंतर

विशेषताFDI (Foreign Direct Investment)FII (Foreign Institutional Investor)
निवेश की प्रकृतिदीर्घकालिकअल्पकालिक
निवेश क्षेत्रकंपनी/उद्योग विशेषशेयर बाजार
बाजार से बाहर निकलने की सुविधाकमआसान
असरउत्पादन, रोज़गार और तकनीकपूंजी प्रवाह और तरलता
नियामक संस्थाDPIITSEBI और RBI

🧩 FDI के प्रकार

  1. Horizontal FDI – समान उद्योग में दूसरे देश में विस्तार उदाहरण: McDonald’s का भारत में विस्तार
  2. Vertical FDI – सप्लाई चेन के अगले या पिछले स्तर में निवेश उदाहरण: Nestle का ब्राज़ील में कॉफी उत्पादन में निवेश
  3. Conglomerate FDI – भिन्न क्षेत्र में निवेश उदाहरण: Walmart का TATA Motors में निवेश
  4. Platform FDI – एक देश में उत्पादन और तीसरे देश में निर्यात उदाहरण: Chanel का USA में उत्पादन और एशिया में निर्यात

📚 FII और RBI का संतुलन

FIIs के प्रभाव को संतुलित रखने के लिए RBI सक्रिय निगरानी करता है। जैसे ही किसी कंपनी में निवेश 22% के करीब पहुँचता है, RBI सभी बैंकों को चेतावनी भेजता है। इसके बाद यदि और निवेश करना हो तो पहले RBI की अनुमति लेनी पड़ती है। इससे निवेश में पारदर्शिता बनी रहती है और बाजार में स्थायित्व आता है।


निष्कर्ष: दो शक्तिशाली नीतियाँ, एक मज़बूत भारत

भारत की आर्थिक नीतियों में MAT और FIIs का संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहां MAT कर संग्रहण को पारदर्शी बनाता है और टैक्स चोरों पर लगाम कसता है, वहीं FIIs से देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह होता है, जिससे देश के बाजार को मजबूती मिलती है।

MAT – टैक्स का न्यूनतम मूल्य निर्धारण जो आर्थिक न्याय सुनिश्चित करता है।
FIIs – वैश्विक पूंजी का प्रवेश द्वार जो आर्थिक विकास को बढ़ाता है।

इन दोनों के प्रभावी प्रबंधन से भारत अपनी आर्थिक नींव को और अधिक सुदृढ़ कर सकता है।

Twinkle Pandey

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